Real life inspirational story of tipu sultan
मस्जिदे अअला के पहले इमाम,साहिबे तरतीब टीपू सुलतान
शव्वाल की पहली तारीख थी ।
ईदुल फित्र का दिन था । हिंदुस्तान में ईद की खुशी का माहोल था । लेकिन श्रीरंगापट्टनम में ईद की खुशी के साथ में साथ एक दूसरी खुशी का भी माहोल था ।
क्यूं के उस दिन वहां एक आलीशान शाही मस्जिद का इफतिताह यानी आरंभ होनेवाला था । जिस का नाम ' मस्जिदे अअला रख्खा गया था । उस की तामीर शेरे मैसूर सुलतान टीपू शहीद ने की थी ।
और उस वक्त वह मैसूर के बादशाह भी थे । क्यूं कि सुलतान टीपू शहीद की चाहत थी के मस्जिद में सब से पहले कोई एसा आदमी इमामत करे , या ' नी लोगों को नमाज पढाऐ जो साहिबे तरतीब हो ।
'साहिबे तरतीब ' उस आदमी को , कहते है जिस की बालिग होने के बाद से एक भी फर्ज नमाज कज़ा न हुई हो । इस के लिये उन्होंने अपनी पूरी सल्तनत के तमाम उलमा और बुजुर्गों को बुलवाया था
ताके उन में कोई साहिबे तरतीब हो तो वह लोगों को सब से पहले नमाज पढाए । मस्जिद पूरी भर चूकी थी । आम मुसलमान , बडे उलमा और बुजुर्ग मस्जिद में मौजूद थे । नमाज़ का वक्त होते ही एलान किया गया के . . . इस मस्जिद में आज सबसे पहली नमाज वो आदमी पढाए जो साहिबे तरतीब हो ।
यह एलान सुनकर लोगों में सन्नाटा छा गया । बड़े उलमा और बुजुर्ग भी इस एलान को सुनते ही एक दूसरे का मुंह देखने लगे और सोचने लगे के ऐसा खुशनसीब आदमी कौन होगा ।काफी देर हो चूकी ।
लेकिन कोई आगे नहीं बढा । के साथ इतने में अचानक एक आदमी लोगों को चीरते हुए आगे बढ़ा और कहा . . . अल्हम्दुलिल्लाह । में वो आदमी हूं जिस की बालिग होने के बाद से आज तक एक भी फर्ज नमाज कज़ा नहीं हुई । तमाम लोग उस आदमी को देखकर हैरान रह गए ।
क्यू कि वह आदमी और कोई नहीं थे, सल्तनत के बादशाह शेरे मैसूर सुलतान टीपू शहीद रहमतुल्लाहि अलयहि खूद ही थे । - उस के बाद सुलतान टीपू शहीदने लोगों को नमाज़ पढाई ।
और इस तरह मस्जिद अअला का आरंभ हुआ । ऐसे नेक , दीनदार और अल्लाह वाले बादशाह थे शेरे मैसूर सुलतान टीपू शहीद रहमतुल्लाहि अलयहि
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मस्जिदे अअला के पहले इमाम,साहिबे तरतीब टीपू सुलतान
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शव्वाल की पहली तारीख थी ।
ईदुल फित्र का दिन था । हिंदुस्तान में ईद की खुशी का माहोल था । लेकिन श्रीरंगापट्टनम में ईद की खुशी के साथ में साथ एक दूसरी खुशी का भी माहोल था ।
क्यूं के उस दिन वहां एक आलीशान शाही मस्जिद का इफतिताह यानी आरंभ होनेवाला था । जिस का नाम ' मस्जिदे अअला रख्खा गया था । उस की तामीर शेरे मैसूर सुलतान टीपू शहीद ने की थी ।
और उस वक्त वह मैसूर के बादशाह भी थे । क्यूं कि सुलतान टीपू शहीद की चाहत थी के मस्जिद में सब से पहले कोई एसा आदमी इमामत करे , या ' नी लोगों को नमाज पढाऐ जो साहिबे तरतीब हो ।
'साहिबे तरतीब ' उस आदमी को , कहते है जिस की बालिग होने के बाद से एक भी फर्ज नमाज कज़ा न हुई हो । इस के लिये उन्होंने अपनी पूरी सल्तनत के तमाम उलमा और बुजुर्गों को बुलवाया था
ताके उन में कोई साहिबे तरतीब हो तो वह लोगों को सब से पहले नमाज पढाए । मस्जिद पूरी भर चूकी थी । आम मुसलमान , बडे उलमा और बुजुर्ग मस्जिद में मौजूद थे । नमाज़ का वक्त होते ही एलान किया गया के . . . इस मस्जिद में आज सबसे पहली नमाज वो आदमी पढाए जो साहिबे तरतीब हो ।
यह एलान सुनकर लोगों में सन्नाटा छा गया । बड़े उलमा और बुजुर्ग भी इस एलान को सुनते ही एक दूसरे का मुंह देखने लगे और सोचने लगे के ऐसा खुशनसीब आदमी कौन होगा ।काफी देर हो चूकी ।
लेकिन कोई आगे नहीं बढा । के साथ इतने में अचानक एक आदमी लोगों को चीरते हुए आगे बढ़ा और कहा . . . अल्हम्दुलिल्लाह । में वो आदमी हूं जिस की बालिग होने के बाद से आज तक एक भी फर्ज नमाज कज़ा नहीं हुई । तमाम लोग उस आदमी को देखकर हैरान रह गए ।
क्यू कि वह आदमी और कोई नहीं थे, सल्तनत के बादशाह शेरे मैसूर सुलतान टीपू शहीद रहमतुल्लाहि अलयहि खूद ही थे । - उस के बाद सुलतान टीपू शहीदने लोगों को नमाज़ पढाई ।
और इस तरह मस्जिद अअला का आरंभ हुआ । ऐसे नेक , दीनदार और अल्लाह वाले बादशाह थे शेरे मैसूर सुलतान टीपू शहीद रहमतुल्लाहि अलयहि
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